Mantra Durga

Some Powerful Mantras from Durga Saptshati

समस्त कष्टों से मुक्ति पाने के लिए दुर्गासप्तशती के मंत्र

समस्त कष्टों से मुक्ति पाने के लिए दुर्गासप्तशती के मंत्र

मंत्रशास्त्रियों के अनुसार अगर नवरात्रि में दुर्गासप्तशती के मंत्रों का पूर्ण विधि-विधान से पाठ किया जाए तो बड़ी से बड़ी समस्या को भी हल किया जा सकता है। दुर्गासप्तशती में हर समस्या के लिए एक विशेष मंत्र बताया गया है जिसके जाप से व्यक्ति को तुरंत ही राहत मिलती है तथा समस्या हल हो जाती है।

मंत्र जपः जप विधि
सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर साफ-सुथरे कपड़े पहन कर किसी शांत स्थान पर बैठ कर मां दुर्गा की आराधना करें। इसके बाद रूद्राक्ष अथवा लाल चंदन की माला से मंत्र का जाप करें। जप शुरु करने के पहले किसी योग्य विद्वान से इन मंत्रों का उच्चारण सीख लें ताकि कोई गलती न हो सकें।

आप नीचे दिए गए मंत्रों में से अपनी समस्या के अनुसार कोई भी एक मंत्र चुन लें तथा उसका विधि-विधान से जप करें।

दुर्भाग्य से मुक्ति तथा समस्त बाधाओं की शांति के लिए
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनासनम्।।

अचानक आई विपत्ति के नाश के लिए
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य‌।।

सुंदर तथा सुशील पत्नी पाने के लिए
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम।।

गरीबी से मुक्ति पाने के लिए
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाद्र्रचिता।।

शत्रुओं तथा समस्त कष्टों से रक्षा के लिए
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च।।

मृत्यु पश्चात स्वर्ग तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए
सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हदि संस्थिते।
स्वर्गापर्वदे देवि नारायणि नमोस्तु ते।।

समस्त संकटों के नाश के लिए
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।

भय नाश के लिए
यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु।।

शारीरिक, मानसिक रोगों के नाश के लिए
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।



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